आत्मा कहाँ जाती है जैसे कई विवरणों का विस्तार से वर्णन किया गया है।मृत्यु हमारे जीवन का अटल सत्य है,जिसे कोई नहीं रोक सकता।इस धरती पर जिसने जन्म लिया है उसका एक दिन मरना निश्चित है।हिंदू धर्म में जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उसके मृत शरीर का अंतिम संस्कार किया जाता है लेकिन हिंदू धर्म में जब व्यक्ति की मृत्यु शाम या रात के समय होती है।
शास्त्रों के अनुसार यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु दिन के अंत में हो तो उसके शरीर को तुलसी के पौधे के पास रखना चाहिए।शव को अकेला नहीं छोड़ना चाहिए।वहां मरे हुए आदमी की आत्मा भटकती रहती है।
जिससे व्यक्ति का भौतिक शरीर अलग-थलग पड़ जाता है।जिससे व्यक्ति के शरीर में बुरी आत्मा का साया प्रवेश कर सकता है।इसलिए रात में शव को अकेला नहीं छोड़ा जाता है।फिर शव को घर में ही रख दिया जाता है और रात भर शव की रखवाली परिवार वालों द्वारा की जाती है।
हिंदू धर्म में जब किसी व्यक्ति की मृत्यु शाम या रात के समय होती है, तो उसके शरीर को पूरी रात घर पर रखा जाता है और अगले दिन अंतिम संस्कार जुलूस निकाला जाता है क्योंकि हिंदू धर्म में सूर्यास्त के बाद अंतिम संस्कार नहीं किया जाता है।
ऐसे में शाम या रात के समय शव को तुलसी के पौधे के पास रखकर पहरा दे दिया जाता है।इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि कोई जानवर शव को नुकसान न पहुंचाए।इसलिए रात भर परिजन शव के पास बैठकर उसकी देखभाल करते हैं। इस बीच शव के पास अगरबत्ती भी जलाई जाती है,ताकि शव से दुर्गंध न आए।
किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद की जाने वाली रस्म को अंत्येष्टि कहते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अगर रात में दाह संस्कार किया जाए तो उसकी आत्मा को शांति नहीं मिलती है।इसलिए रात में किसी की मृत्यु हो जाए तो शव को श्मशान घाट नहीं ले जाना चाहिए।
अगर सूर्यास्त के बाद किसी की मृत्यु हो जाती है तो भी उसके शव को अगले दिन तक रखा जाता है।गरुड़ पुराण में सूर्यास्त के बाद दाह संस्कार करने की मनाही है। इससे मृतक की आत्मा पतित होकर असुरों, दैत्यों और दैत्यों की योनि में जन्म लेती है।
रात में शव को अकेले छोड़ना बड़ी परेशानी का सबब बन सकता है।सभी बुरी आत्माएं रात के समय घूमती हैं।ऐसे में ये मृतक के शरीर में प्रवेश कर सकते हैं और परिवार के सदस्यों के लिए भी मुसीबत खड़ी कर सकते हैं।
शव को अकेला नहीं रखना चाहिए क्योंकि मरने के बाद मृतक की आत्मा शव के आसपास ही रहती है।फिर से शरीर में प्रवेश करना चाहती है क्योंकि वह शरीर से जुड़ी हुई है और अपनों का प्यार आत्मा पर हावी है।ऐसे में जब वह अपने लोगों को शव को अकेला छोड़ता देखता है तो उसे दुख होता है।
यदि शव को अकेला छोड़ दिया जाए तो उसके आसपास लाल चींटियों या अन्य कीड़ों के आने का भय रहता है।शव के पास बैठे व्यक्ति का ध्यान रखना जरूरी है।कुछ तांत्रिक क्रियाएं भी रात के समय की जाती हैं।ऐसे में शव को अकेला छोड़ना मृत आत्मा के लिए परेशानी का सबब बन सकता है।शव के आसपास किसी का होना जरूरी है।
यदि पंचक काल में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो पंचक काल में शव का अंतिम संस्कार नहीं किया जा सकता है।शव का अंतिम संस्कार करने के लिए पंचक काल के समाप्त होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए।तब तक शव को घर में रखा जाता है और किसी को शव के साथ रहना होता है।
गरुड़ पुराण के अनुसार यदि पंचक में किसी की मृत्यु होती है तो उसके साथ उसके परिवार के पांच अन्य सदस्यों की भी मृत्यु हो जाती है।इस भय को दूर करने के लिए आटे,बेसन या कुश से बने पांच पुतलों का पूरे विधि-विधान के साथ शव के साथ अंतिम संस्कार किया जाता है।
ऐसा करने से पंचक दोष नष्ट हो जाता है।मृत शरीर को अकेला न छोड़ने का सबसे बड़ा कारण यह है कि यदि मृत शरीर को अकेला छोड़ दिया जाए तो कुत्ते और बिल्ली जैसे जानवर उसे विघटित कर सकते हैं।