यह समय की बात है।जब हस्तिनापुर के राजा शांता ने गंगा के तट पर रानी से विवाह का प्रस्ताव रखा,तो रानी ने एक वचन मांगा कि राजा जीवन में कभी भी उनसे कुछ भी नहीं पूछेगा और अगर उन्होंने ऐसा किया तो रानी उन्हें हमेशा के लिए छोड़ देगी।
समय-समय पर सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन एक बार राजा शांतनु ने देखा कि रानी ने अपने बच्चे को नदी में छोड़ दिया है।वचन के अनुसार राजा कुछ नहीं पूछ सका।
एक या दो और जब आठवीं संतान रानी को हुई तो एक बार फिर रानी बच्चे को लेकर गंगा नदी की ओर चल दी लेकिन इस बार राजा का सब्र टूट गया और पूछने पर रानी ने कहा कि वह ब्रह्मा और ऋषि की बेटी है वशिष्ठ ने श्राप दिया था कि उनकी सभी संतानें धरती पर जन्म लेंगी।यदि वह बच्चों को गंगा में छोड़ देगा तो वे हमेशा के लिए मानव जाति से मुक्त हो जाएंगे।
इस अंतिम संस्कार में मृत शरीर को अग्नि दी जाती है।अंतिम संस्कार की इस प्रक्रिया में देह के जो अंग होते हैं,उसमें से मात्र हड्डियों के अवशेष ही बचते हैं।अवशेष भी काफी हद तक जल जाते हैं और इन्हीं को अस्थियों के रूप में रखा जाता है।
भगवान शिव की जटाओं में वास किया था और तब पृथ्वी पर नीचे आई थीं।गंगा को स्वर्ग की नदी कहा जाता है।गंगा नदी के किनारे जिस व्यक्ति का निधन होगा है,अगर किसी की मृत्यु गंगा किनारे नहीं भी होती है तो भी उसकी अस्थियों को गंगा में ही प्रवाहित किया जाता है जिससे कि उसके पाप धुल जाएं और उसे मोक्ष की प्राप्ति हो सके।
गंगा में अस्थियों को प्रवाहित करने से स्वर्ग का मार्ग खुल जाता है और व्यक्ति को यमदण्ड का सामना भी नहीं करना पड़ता है।गंगा में अस्थियां डालने से पाप तो नष्ट हो जाते हैं और आत्मा को नया मार्ग भी मिल जाता है।
भारत में प्रयाग,हरिद्वार,काशी और नासिक कुछ प्रमुख जगह हैं जहां पर अस्थियों को पूरे विधि विधान से प्रवाहित किया जाना।इससे सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है।व्यक्ति की अस्थियां काफी समय तक गंगा नदी में ही रहती हैं।धीरे धीरे मां गंगा उन अस्थियों के माध्यम से इंसान के पाप को नष्ट करती हैं।फिर इंसान की आत्मा के लिए नया मार्ग खुल जाता है।
जब व्यक्ति का शरीर पूरी तरह से जल जाता है उसके बाद ही अस्थियों को लिया जाता है।मृत शरीर में कई तरह के रोगाणु और जीवाणु पैदा हो जाते हैं और इनके फैलने का खतरा बना रहता है,जिससे बीमारियां हो सकती है।
जब व्यक्ति को जला दिया जाता है तो ये सारे जीवाणु और रोगाणु मर जाते हैं और जो बची हुई हड्डियां होती है,एकदम सुरक्षित और स्वच्छ होती हैं।इन्हीं अस्थियों को घर पर लाया जाता है।इन्हें छूने पर किसी भी प्रकार का कोई डर नहीं होता है।
फिर इन अस्थियों का भी श्राद्ध कर्म कर दिया जाता है और इन्हें फिर पवित्र नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है।जो लोग गंगा किनारे बसे हुए रहते हैं,उन लोगों को उसी दिन अस्थियों का विसर्जन कर देना चाहिए।जो लोग नदी किनारे नहीं बसे हैं वो लोग उस अस्थि कलश को घर के बाहर किसी पेड़ पर लटका दें।
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